Shiv Chalisa in Hindi – शिव चालीसा

Shivji Ki Aarti

Shiv Chalisa in Hindi – शिव चालीसा

Shiv Chalisa in Hindi – शिव चालीसा

सनातन धर्म में प्रचलित शिव चालीसा भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव की पूजा एवं उनकी कृपा पाने के लिए भक्त शिव चालीसा का पाठ करते हैं। सनातन धर्म के अनुसार सृष्टि के आदिकाल में जब सब जगह अंधकार ही अंधकार था, ना दिन था ना रात, न सत्य ना असत्य तब केवल भगवान शिव ही थे। शिव पुराण में भी इसकी चर्चा की गयी है। शिव पुराण के अनुसार ‘एक एवं तदा रुद्रो न द्वितीयोऽस्नि कश्चन’ सृष्टि के आरम्भ में एक ही रुद्र देव विद्यमान रहते हैं, जो स्वयं भगवान शिव है, दूसरा कोई नहीं होता है। वे ही इस जगत की सृष्टि करते हैं, इसकी रक्षा करते हैं और अंत में इसका संहार करते हैं। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं, इसलिए देवता, दानव एवं ऋषि मुनि भी भगवान शिव का ही ध्यान करके अपनी तपस्या करते हैं। ऐसा कहा भी जाता है की भगवान शिव की जो दिल से पूजा करता है, भगवान शिव उसकी हर इच्छा को पूर्ण करते हैं। भगवान शिव का ११ रूद्र अवतार है हनुमान जी, जिनके बारे में आप यहा पढ़ सकते हैं- Hanuman Chalisa in Hindi .

जानिए क्यों होती है शिवलिंग की पूजा

संस्कृत में लिंग का अर्थ होता है प्रतिक, जिस कारण हम शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतिक मानते है, और उसकी पूजा करते हैं। भगवान शिव के भारत में 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जिनकी पूजा करने श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है, और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। इसलिए भगवान शिव के भक्त उनकी पूजा करने के लिए शिवलिंग के रूप में उनकी छवि को देखते हैं, और उसकी पूजा करते है। शिवलिंग के ऊपर जल एवं दूध चढाने से एवं ॐ नमः शिवाय का जाप करने से भगवान शिव प्रसन होते है, और भक्तों की इच्छा को पूर्ण करते हैं।

जानिए नीलकंठ नाम का क्या कारण था

देवासुर संग्राम के समय जब देवताओं और असुरों में अमृत को लेकर भीषण युद्ध चल रहा था। तब मंथन से 14 रत्न निकले और इन्हीं रत्नों में कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं। जिसके कारण समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गरमी से जलने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान शिव विषपान के लिए तैयार हो गए। उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ में ही रोक कर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए। आपको बता दे कि जिस स्थान पर भगवान शिव ने विष को पिया था, वहां आज नीलकंठ महादेव का मंदिर है।

जानिए जब भगवन शिव को आया था भयंकर क्रोध

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव की पहली पत्नी माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल यज्ञ किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था। इस बात का पता चलने पर माता सती को क्रोध आया और वह यज्ञ में चली गयीं। उस समय यज्ञ-स्थल पर माता सती ने अपने पिता से भगवान शिव को आमंत्रित न करने की वजह पूछी और अपनी नाराज़गी प्रकट की। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को अपशब्द कहकर अपमान किया, जिसके अपमान से पीड़ित होकर माता सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शिव को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध की वजह से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और वे क्रोध की वजह से तांडव करने लगे। इसके पश्चात भगवन शिव ने यज्ञ-स्थल पर पहुंच कर यज्ञकुंड से माता सती के पार्थिव शरीर को निकाला और कंधे पर उठा लिया और दुखी मन से वापस कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे। इस दौरान देवी सती के शरीर के अंग जिन जगहों पर गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाये। जो कि वर्तमान समय में भी उन जगहों पर स्थित हैं और आज भी पूजे जाते हैं।

 

 

Shiv Chalisa in Hindi

॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

 

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