Vishnu Chalisa in Hindi PDF- विष्णु चालीसा:

vishnu chalisa

Vishnu Chalisa in Hindi PDF- विष्णु चालीसा:

Vishnu Chalisa-परिचय

भगवान विष्णु सनातन धर्म में त्रिदेवों में से एक हैं। भगवान विष्णु को ब्रह्मांड के रक्षक के रूप में जाना जाता है। इसी कारण जब -जब भी पृथ्वी पर कोई संकट आता है, भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा के लिए पृथ्वी पर आते हैं। शास्त्रों द्वारा भगवान् विष्णु के चौबीस अवतार माने जाते है, जिसमे से तेईस अवतारों का अवतरण हो चुका है, जबकि चौबीस वें अवतार के रूप में भगवान विष्णु कल्कि अवतार में अवतरित होंगे। इन सभी अवतारों में से भगवान विष्णु के दो अवतार सबसे ज्यादा लोकप्रिय एवं पूजन्य है, जिन्हे भगवान ने तब-तब लिया जब पृथ्वी पर भारी संकट आया था। इनमें से पहला अवतरण भगवान श्री राम का था, जिसमे भगवान ने सबसे शक्तिशाली असुर रावण का वध कर पृथ्वी को बचाया था। दूसरा वाला अवतरण भगवान का सबसे नटखट अवतार था, जिसमे भगवान ने श्री कृष्ण के रूप में जनम लेकर अधर्म पर धर्म की जीत का साथ दिया था। इसी तरह पृथ्वी पर जब-जब अधर्म बढ़ता है, तब-तब भगवान अपने नए रूप में अवतरण होकर पृथ्वी में जनम लेते हैं। कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि अवतार में जनम लेकर कलयुग के अंतिम चरण में अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करेंगे।

जब भगवान को आया भीषण क्रोध

भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्त थे पप्रहलाद जी। प्रहलाद जी असुर राजा हिरण्यकश्यप के पुत्र थे। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था। दरअसल हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दो भाई थे, जिन्हे पिछले जन्म में श्राप मिला था की अगले जनम में उनकी मृत्यु भगवान विष्णु के हाथों होगी। भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का वध कर दिया था। इस वध का बदले लेने के लिए हिरण्यकश्यप ने ब्रम्हा जी की कड़ी तपस्या की ताकि वो उनसे अमरता का वरदान ले सके। ब्रम्हा जी उसकी तपस्या से खुश हुए लेकिन अमरता का वरदान देने से मना कर दिया। इस पर हिरण्यकश्यप ने ब्रम्हा जी से ऐसा वरदान माँगा जिससे उसे लगा उसे कोई ना मार सके। उसने माँगा कोई भी नर-नारी, पशु-पक्षी, देवता-दानव, किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उसे मार ना सके। उसे सुबह-दिन-रात, ना घर के अंदर ना ही बहार ना आकाश में ना धरती पर मार सके। ब्रम्हा जी से यह वरदान पाकर उसे लगा वह अब अमर हो गया। तब उसने पृथ्वी पर बहुत आतंक मचाया। जो भी भगवान विष्णु का नाम लेता वह उसे मार देता। ऐसे में हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद जी का जन्म हुआ जो बचपन से ही भगवान विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद जी को मारने के कई प्रयास किये। पर हर बार भगवान विष्णु अपने भक्त को बचा लेते। अंत में जब हिरण्यकश्यप का पाप का घड़ा भर गया था। तब भगवान ने ब्रम्हा जी के दिए वरदान के अनुसार नरसिंह अवतार लिया। नरसिंह अवतार नर और सिंह का अवतार था। जिसमे भगवान का मुख सिंह का था और धड़ नर का। भगवान ने उसे शाम के समय में अपनी जंघा में रखकर उसे अपने नाखूनो से मार था। ऐसे करके उन्होंने पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया था।

 

Vishnu Chalisa in Hindi

दोहा

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय

विष्णु चालीसा

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत

शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे
सत्य धर्म मद लोभ गाजे, काम क्रोध मद लोभ छाजे

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा

आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे

चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै


इति श्री विष्णु चालीसा

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top