Khatu Shyam Chalisa in Hindi PDF-खाटू श्याम चालीसा

Khatu Shyam Chalisa

Khatu Shyam Chalisa in Hindi PDF-खाटू श्याम चालीसा

Khatu Shyam Chalisa-परिचय

खाटू श्याम बाबा को कलयुग में श्री कृष्ण का ही रूप माना जाता है। श्री कृष्ण ने ही उनकी वीरता को देखकर उनका नाम खाटू श्याम रखा था। बाबा खाटू श्याम का सबसे बड़ा मंदिर राजस्थान के सीकर में है, यह मंदिर भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ऐसी मान्यता है की जो भी बाबा के इस मंदिर में आता है, बाबा खाटू श्याम उसकी मदद जरूर करते हैं। इसलिए खाटू श्याम बाबा को लोग हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा कहकर भी बुलाते हैं। खाटू श्याम बाबा पराक्रमी पांडु पुत्र भीम के पोते और बलशाली घटोत्कच के बेटे बर्बरीक हैं। आज कलयुग में बर्बरीक जी की खाटू श्याम के रूप में पूजा की जाती है। बर्बरीक जी में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे। बर्बरीक जी ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की जिसके पश्चात भगवान शिव उनसे प्रसन्न हुए और उन्हें तीन अभेद्य बाण का वरदान दिया था। वह तीन बाण इतने शक्तिशाली थे जिनका का उपयोग करके बर्बरीक जी कोई सा भी युद्ध जीत सकते थे। इन तीन बाणो से वह एक ही बार में पूरी पांडव एवं कौरव सेना को खत्म करने का सामर्थ्य रखते थे। ऐसे में श्री कृष्ण पहले से युद्ध के परिणाम जानते थे, और उन्हें ज्ञात था की बर्बरीक जी युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भगवान कृष्ण ने बर्बरीक जी की ऐसी परीक्षा ली जिसके बाद से दुनिया उन्हें खाटू श्याम के नाम से जानती हैं।

जानिए महावीर बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम बाबा

महाभारत के युद्ध के दौरान महावीर बर्बरीक को युद्ध में भाग लेना था, जिसके लिए उन्होंने अपनी माता अहिलावती के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की थी। इसके पश्चात उन्होंने अपनी माता से प्रश्न किया कि उन्हें किसका साथ देना चाहिए, जिसपर उनकी माता ने कहा जो भी हार रहा हो उसका सहारा बनना। माता के इन्हीं वचनों को मानकर महावीर बर्बरीक जी महाभारत युद्ध में भाग लेने के लिए निकल पड़े। जब श्री कृष्ण को यह बात पता चली की महावीर बर्बरीक जी युद्ध में हारने वाले का साथ देंगे तो वह खुद बर्बरीक जी के पास गए। श्री कृष्ण ने बर्बरीक जी से युद्ध में किसका साथ देना का प्रश्न किया, जिसपर उन्होंने अपनी माता की बोली हुई बात का ध्यान करते हुए उत्तर दिया की जो भी पक्ष हार रहा होगा वह उनका साथ देंगे। ऐसे में भगवान कृष्ण को पहले से ही ज्ञात था की अधर्म का साथ देने वाले कौरव इस युद्ध में हार जायेंगे। जब श्री कृष्ण ने उन्हें कौरव द्वारा किये गए पापों के बारे में बताया तथा युद्ध में पांडवो का साथ देने को कहा तो ऐसे में बर्बरीक जी ने माँ को दिया वचन भगवान कृष्ण को बताया, जिसपर भगवान कृष्ण ने धर्म की जीत के लिए बर्बरीक जी से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक जी महावीर होने के साथ दानवीर भी थे, और वह भगवान कृष्ण को अपना गुरु भी मानते थे, तो उन्होंने अपना शीश काटकर श्री कृष्ण के श्री चरणों में रख दिया। यह देखकर भगवान कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया की वह श्री कृष्ण के नाम श्याम से जाने जायेंगे, तथा कलयुग में उन्हें भगवान का ही रूप माना जाएगा। इसी कारण आज पूरी धरती पर लोग उन्हें खाटू श्याम के नाम से जानते हैं।

बर्बरीक जी के तीन अभेद्य बाण

बर्बरीक जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी। उनकी कड़ी तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें अपने दर्शन दिए। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद के रूप में तीन अभेद्य बाण दिए जिनका उपयोग करके वह कोई सा भी युद्ध जीत सकते थे। आज हम आपको उन तीन अभेद्य बाणो के बारे में बताएँगे। आपको बता दें कि पहला बाण उनको चिंहित करेगा जिनकी युद्ध में रक्षा करनी है। दूसरा बाण उनको चिंहित करेगा जिनका वध करना है। तीसरा बाण से वध करने वाले चिंहित योद्धाओं और सेना का वध करके वापिस तरकश में आ जाएगा। यह तीनों बाण अतयंत शक्तिशाली थे, जिनकी एक बार भगवान कृष्ण ने भी परीक्षा ली थी। महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण ने युद्ध से पहले बर्बरीक जी की परीक्षा ली थी, वह देखना चाहते थे की उनके बाण किस तरह कार्य करते है। बर्बरीक जी के बाणों की शक्ति देखकर श्री कृष्ण समझ गए कि यह तो युद्ध कुछ ही क्षणों में खत्म करने का सामर्थ्य रखता हैं।

 

जब बर्बरीक जी ने बताया युद्ध का परिणाम

भगवान कृष्ण को अपना शीश दान देते हुए बर्बरीक जी ने भगवान कृष्ण से एक विनती की थी। बर्बरीक जी ने भगवान कृष्ण से महाभारत का सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की थी। भगवान कृष्ण ने उनकी इच्छा को स्वीकार कर उन्हें सम्पूर्ण युद्ध देखने का वरदान दे दिया था। भगवान कृष्ण ने बर्बरीक जी के शीश को कुरुक्षेत्र के युद्ध मैदान से दूर एक ऊंचे पर्वत पर स्थान दिया। जहां से उन्होंने लगातार अठारह दिन तक चले महाभारत के युद्ध को सम्पूर्ण रूप से देखा और जाना की कैसे धर्म की इस लड़ाई में भगवान ने बिना शस्त्र उठाये कैसे युद्ध में जीत प्राप्त की। जब अठारह दिन बाद महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडव जानना चाहते थे की युद्ध में सबसे पराक्रमी योद्धा कौन था। इसलिए वह भगवान कृष्ण के पास गए और उनसे पूछा की युद्ध में सबसे पराक्रमी योद्धा कौन था। तब भगवान कृष्ण ने कहा में तो स्वयं महाभारत के इस युद्ध में तुम्हारे साथ था तो में कैसे देख पाता। इसलिए तुम बर्बरीक के पास जाओ वह तुम्हे बताएँगे युद्ध में कौन सबसे पराक्रमी था। जब पांडवो ने बर्बरीक जी से पूछा की युद्ध में कौन सबसे पराक्रमी था तब उन्होंने कहा, मुझे तो युद्ध में केवल भगवान कृष्ण ही दिख रहे थे। उन्हीं का पराक्रम पुरे युद्ध में था। तब पांडवो को समझ आया की किसकी सहायता से वह युद्ध इतनी आसानी से जीत गए। इस पर भगवान कृष्ण प्रशन्न हुए और उनके शीश की वह स्थापना कर उन्हें आशीर्वाद दिया की आज से लोग बर्बरीक जी को लोग उन्हीं का रूप मानेंगे। खाटू श्याम बाबा की पूजा करने के लिए भक्त उनकी आरती एवं भजन गाते हैं।

Khatu Shyam Chalisa in Hindi
॥ दोहा॥
श्री गुरु चरणन ध्यान धर,
सुमीर सच्चिदानंद ।
श्याम चालीसा भजत हूँ,
रच चौपाई छंद ।

॥ चौपाई ॥
श्याम-श्याम भजि बारंबारा ।
सहज ही हो भवसागर पारा ॥

इन सम देव न दूजा कोई ।
दिन दयालु न दाता होई ॥

भीम सुपुत्र अहिलावाती जाया ।
कही भीम का पौत्र कहलाया ॥

यह सब कथा कही कल्पांतर ।
तनिक न मानो इसमें अंतर ॥

बर्बरीक विष्णु अवतारा ।
भक्तन हेतु मनुज तन धारा ॥

बासुदेव देवकी प्यारे ।
जसुमति मैया नंद दुलारे ॥

मधुसूदन गोपाल मुरारी ।
वृजकिशोर गोवर्धन धारी ॥

सियाराम श्री हरि गोबिंदा ।
दिनपाल श्री बाल मुकुंदा ॥

दामोदर रण छोड़ बिहारी ।
नाथ द्वारिकाधीश खरारी ॥

राधाबल्लभ रुक्मणि कंता ।
गोपी बल्लभ कंस हनंता ॥ 10

मनमोहन चित चोर कहाए ।
माखन चोरि-चारि कर खाए ॥

मुरलीधर यदुपति घनश्यामा ।
कृष्ण पतित पावन अभिरामा ॥

मायापति लक्ष्मीपति ईशा ।
पुरुषोत्तम केशव जगदीशा ॥

विश्वपति जय भुवन पसारा ।
दीनबंधु भक्तन रखवारा ॥

प्रभु का भेद न कोई पाया ।
शेष महेश थके मुनिराया ॥

नारद शारद ऋषि योगिंदरर ।
श्याम–श्याम सब रटत निरंतर ॥

कवि कोदी करी कनन गिनंता ।
नाम अपार अथाह अनंता ॥

हर सृष्टी हर सुग में भाई ।
ये अवतार भक्त सुखदाई ॥

ह्रदय माहि करि देखु विचारा ।
श्याम भजे तो हो निस्तारा ॥

कौर पढ़ावत गणिका तारी ।
भीलनी की भक्ति बलिहारी ॥ 20

सती अहिल्या गौतम नारी ।
भई श्रापवश शिला दुलारी ॥

श्याम चरण रज चित लाई ।
पहुंची पति लोक में जाही ॥

अजामिल अरु सदन कसाई ।
नाम प्रताप परम गति पाई ॥

जाके श्याम नाम अधारा ।
सुख लहहि दुःख दूर हो सारा ॥

श्याम सलोवन है अति सुंदर ।
मोर मुकुट सिर तन पीतांबर ॥

गले बैजंती माल सुहाई ।
छवि अनूप भक्तन मान भाई ॥

श्याम-श्याम सुमिरहु दिन-राती ।
श्याम दुपहरि कर परभाती ॥

श्याम सारथी जिस रथ के ।
रोड़े दूर होए उस पथ के ॥

श्याम भक्त न कही पर हारा ।
भीर परि तब श्याम पुकारा ॥

रसना श्याम नाम रस पी ले ।
जी ले श्याम नाम के ही ले ॥ 30

संसारी सुख भोग मिलेगा ।
अंत श्याम सुख योग मिलेगा ॥

श्याम प्रभु हैं तन के काले ।
मन के गोरे भोले–भाले ॥

श्याम संत भक्तन हितकारी ।
रोग-दोष अध नाशे भारी ॥

प्रेम सहित जब नाम पुकारा ।
भक्त लगत श्याम को प्यारा ॥

खाटू में हैं मथुरावासी ।
पारब्रह्म पूर्ण अविनाशी ॥

सुधा तान भरि मुरली बजाई ।
चहु दिशि जहां सुनी पाई ॥

वृद्ध-बाल जेते नारि नर ।
मुग्ध भये सुनि बंशी स्वर ॥

हड़बड़ कर सब पहुंचे जाई ।
खाटू में जहां श्याम कन्हाई ॥

जिसने श्याम स्वरूप निहारा ।
भव भय से पाया छुटकारा ॥

॥ दोहा ॥
श्याम सलोने संवारे,
बर्बरीक तनुधार ।
इच्छा पूर्ण भक्त की,
करो न लाओ बार
॥ इति श्री खाटू श्याम चालीसा ॥

 

 

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