न्याय के देवता शनि देव मनुष्य के कर्मो के अनुसार उसके फल का निर्धारण करते हैं। अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति पर हमेशा शनिदेव की कृपा बनी रहती है, तथा बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को शनिदेव दंड देते हैं। जो कोई व्यक्ति शनिदेव की चालीसा का पाठ हर शनिवार को करता है, उसके जीवन में हर कष्टों का नाश हो जाता है। यहाँ पर Shani Chalisa in HIndi PDF में दी गयी है, जिसे आप डाउनलोड करके पूरी चालीसा का स्मरण कर सकतें हैं।
शनि देव कौन है
हिन्दू धर्म के अनुसार शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है। शनिदेव शनि गृह के देवता हैं। उनकी माता छाया और पिता सूर्य भगवान हैं। शनि देव की सवारी कौवा पक्षी है। शनि देव भगवान कृष्ण के सबसे बड़े भक्त थे, और उनकी हमेशा उनकी आराधना करते थे। शनिदेव का विवाह चित्ररथ की पुत्र से हुआ था। शनि देव भक्तो को उनके कर्मो के अनुसार फल प्रदान करतें है। परिवार से जुडी हर समस्याओं का समाधान शनि देव की कृपा भर से पूरा हो जाता है। अगर किसी व्यक्ति के कुंडली में शनि गृह का दोष है तब वह शनि देव की पूजा आराधना करके ठीक किया जा सकता है। जो कोई व्यक्ति शनि देव की आराधना करता है, उसे अनेकों चमत्कारी परिणाम मिलते हैं।
शनि चालीसा के फायदे
हिन्दू धर्म में शनि चालीसा एक प्रचलित पूजा आराधना है। जिसका निरंतर जाप करने से अनेको और अद्भुत फायदे मिलते हैं। शनि चालीसा करने से आपके वास्तविक जीवन से जुडी हर समस्याओ से छुटकारा मिलता है। अन्य महत्वपूर्ण फायदे के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।
- शनि चालीसा करने से व्यक्ति के कर्मो के अनुसार फल की प्राप्ति होती है।
- जीवन में होने वाले सभी प्रकार के दुखो का नाश होता है।
- आपके जीवन में होने वाले हर प्रकार के खतरे और मुश्किलें टल जाती है।
- घरो में होने वाले रोजाना के झगडे और कलेश से छुटकारा मिलता है।
- हर तरह के कष्ट और बुरी नजरो से सुरक्षा मिलती है।
- अपने लक्षित कार्यों में मन लगता है और जल्दी सफलता की प्राप्ति होती है।
- शनि चालीसा करने से शनि देव की कृपा हमेशा आप पर बनी रहती है।
- शनि चलीसा करने से मन शांत रहता है।
- जो व्यक्ति हर शनिवार के दिन शनि चालीसा का स्मरण सच्चे मन सी करता है, वह हर तरह के शारीरिक कष्टों से दूर रहता है।
जाने शनि की पूजा से क्या फल मिलता है|
शनि चालीसा पढने की सही विधि
आपने हर व्यक्ति की कुंडली में गृह योग या दोष के बारे में तो जरुर सूना होगा। किसी व्यक्ति का गृह नछत्र सही नहीं होने पर उसे पूजा पाठ की सलाह दी जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि आपके शनि गृह को मजबूत करने के लिए सही पूजा विधि क्या है? अगर आपका जवाब नहीं है, तो आपको फ़िक्र करने की जरुरत नहीं है क्यूंकि यहाँ पर सम्पूर्ण विधि का ज़िक्र है, जिससे आपका गृह मजबूत होगा और साथ ही मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। पूरी विधि जानने के लिए आगे पढ़ें।
- हर शनिवार के दिन शनि देव के मंदिर में उनकी मूर्ति शिला के सामने सरसों के तेल का दिया जलाएं और शनि चालीसा का जाप करें।
- आस पास शनिदेव का मंदिर ना होने पर आप पीपल के पेड़ के निचे तेल का दिया जला सकतें है। पीपल का पेड़ ना होने की अवस्था में आप शनिवार के दिन आने वाले बाबाओं को सरसों का तेल, तिल, काली उड़द का दान कर सकतें है।
- दान देने के बाद हाथ जोड़कर शनि चालीसा का जाप करें।
- शनि पूजा के साथ हनुमान जी की पूजा अर्चना करें, हनुमान जी को तिलक लगाये और केले जैसे फल का भोग लगायें, हिन्दू धर्मो के अनुसार यह प्रक्रिया अत्यंत शुभ मानी जाती है।
- हर शनिवार के दिन प्रातः काल में शनि चालीसा का स्मरण करना चाहिए, क्यूंकि यह समय शुभ होता है।
- जो कोई व्यक्ति शनि चालीसा का स्मरण 40 शनिवार को लगतार करता है उसकी हर मनोकामना जल्दी ही पूरी होती है।
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शनि चालीसा PDF हिंदी में पढ़ें
अगर आप भी शनि चालीसा के फायदों से भली-भातीं परिचित है तब आपको, इसका जाप अवश्य करना चाहिए। यहाँ पर शनि चालीसा PDF में दी गयी है जिसे डाउनलोड करके आप शनि चालीसा का स्मरण कर सकतें है।
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥1॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥2॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥3॥
रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥6॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥7॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥8॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥9॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥10॥
॥दोहा॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥