Parvati Chalisa – परिचय
माता पार्वती को समर्पित पार्वती चालीसा से भक्त माता पार्वती की पूजा-आराधना करते हैं। माता पार्वती का जन्म माता सती के रूप में हुआ था। माता पार्वती ने पूर्व जनम में माता सती के रूप में राजा दक्ष प्रजापति के यहा जन्म लिया था। माता सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। राजा दक्ष प्रजापति भगवान शिव को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। पौराणिक कथा के अनुसार माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल यज्ञ किया था। उस यज्ञ में ब्रह्मा जी , भगवान विष्णु, इंद्र देव और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था। इस बात का पता चलने पर माता सती को क्रोध आया और वह यज्ञ में चली गयीं।
उस समय यज्ञ-स्थल पर माता सती ने अपने पिता से भगवान शिव को आमंत्रित न करने की वजह पूछी और अपनी नाराज़गी प्रकट की। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को अपशब्द कहकर अपमान किया, जिसके अपमान से पीड़ित होकर माता सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शिव को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध की वजह से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और वे क्रोध की वजह से तांडव करने लगे। इसके पश्चात भगवन शिव ने यज्ञ-स्थल पर पहुंच कर यज्ञकुंड से माता सती के पार्थिव शरीर को निकाला और कंधे पर उठा लिया और दुखी मन से वापस कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे। इस दौरान देवी सती के शरीर के अंग जिन-जिन जगहों पर गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाये, जो कि वर्तमान समय में भी उन जगहों पर स्थित हैं और आज भी पूजे जाते हैं।
जब हुआ माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह
माता सती की प्राणाहुति के बाद भगवान शिव गहरी साधना में लीन हो गए थे। माता सती ने अगले जन्म में माता पार्वती के रूप में हिमालय राज हिमवान के यहां जन्म लिया। उस समय पृथ्वी पर तारकासुर नामक राक्षस का आतंक था। तारकासुर राक्षस को ब्रम्हा जी का वरदान प्राप्त था, की उसका अंत केवल भगवान शिव का पुत्र ही कर सकता है। उसके आतंक से सभी देवता परेशान थे, देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के लिए योजना बनाई। उन्होंने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के आदेश दिए। कामदेव ने भगवान शिव पर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया, जिससे भगवान शिव को क्रोध आया और उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया।
भगवान शिव का क्रोध देख सभी देवता डर गए। तारकासुर का वध करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान शिव से विनती करी की वह माता पार्वती से विवाह कर ले। भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या देख उन्हें दर्शन दिया और उनसे वरदान मांगने को कहा, जिसपे माता पार्वती ने उनसे विवाह का वरदान माँगा। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। विवाह के बाद भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र कार्तिकेय जी का जन्म हुआ, जिसके पश्चात कार्तिकेय जी ने तारकासुर का अंत कर पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया।
Parvati Chalisa in Hindi
जय गिरी तनये दक्षजे
शम्भू प्रिये गुणखानि ।
गणपति जननी पार्वती
अम्बे! शक्ति! भवानि ॥ ॥ चौपाई ॥
ब्रह्मा भेद न तुम्हरो पावे ।
पंच बदन नित तुमको ध्यावे ॥
षड्मुख कहि न सकत यश तेरो ।
सहसबदन श्रम करत घनेरो ॥
तेऊ पार न पावत माता ।
स्थित रक्षा लय हिय सजाता ॥
अधर प्रवाल सदृश अरुणारे ।
अति कमनीय नयन कजरारे ॥
ललित ललाट विलेपित केशर ।
कुंकुंम अक्षत शोभा मनहर ॥
कनक बसन कंचुकि सजाए ।
कटी मेखला दिव्य लहराए ॥
कंठ मदार हार की शोभा ।
जाहि देखि सहजहि मन लोभा ॥
बालारुण अनंत छबि धारी ।
आभूषण की शोभा प्यारी ॥
नाना रत्न जड़ित सिंहासन ।
तापर राजति हरि चतुरानन ॥
इन्द्रादिक परिवार पूजित ।
जग मृग नाग यक्ष रव कूजित ॥ 10
गिर कैलास निवासिनी जय जय ।
कोटिक प्रभा विकासिनी जय जय ॥
त्रिभुवन सकल कुटुंब तिहारी ।
अणु अणु महं तुम्हारी उजियारी ॥
हैं महेश प्राणेश तुम्हारे ।
त्रिभुवन के जो नित रखवारे ॥
उनसो पति तुम प्राप्त कीन्ह जब ।
सुकृत पुरातन उदित भए तब ॥
बूढ़ा बैल सवारी जिनकी ।
महिमा का गावे कोउ तिनकी ॥
सदा श्मशान बिहारी शंकर ।
आभूषण हैं भुजंग भयंकर ॥
कण्ठ हलाहल को छबि छायी ।
नीलकण्ठ की पदवी पायी ॥
देव मगन के हित अस किन्हो ।
विष लै आपु तिनहि अमि दिन्हो ॥
ताकी तुम पत्नी छवि धारिणी ।
दुरित विदारिणी मंगल कारिणी ॥
देखि परम सौंदर्य तिहारो ।
त्रिभुवन चकित बनावन हारो ॥ 20
भय भीता सो माता गंगा ।
लज्जा मय है सलिल तरंगा ॥
सौत समान शम्भू पहआयी ।
विष्णु पदाब्ज छोड़ि सो धायी ॥
तेहि कों कमल बदन मुरझायो ।
लखी सत्वर शिव शीश चढ़ायो ॥
नित्यानंद करी बरदायिनी ।
अभय भक्त कर नित अनपायिनी ॥
अखिल पाप त्रयताप निकन्दिनी ।
माहेश्वरी हिमालय नन्दिनी ॥
काशी पुरी सदा मन भायी ।
सिद्ध पीठ तेहि आपु बनायी ॥
भगवती प्रतिदिन भिक्षा दात्री ।
कृपा प्रमोद सनेह विधात्री ॥
रिपुक्षय कारिणी जय जय अम्बे ।
वाचा सिद्ध करि अवलम्बे ॥
गौरी उमा शंकरी काली ।
अन्नपूर्णा जग प्रतिपाली ॥
सब जन की ईश्वरी भगवती ।
पतिप्राणा परमेश्वरी सती ॥ 30
तुमने कठिन तपस्या कीनी ।
नारद सों जब शिक्षा लीनी ॥
अन्न न नीर न वायु अहारा ।
अस्थि मात्रतन भयउ तुम्हारा ॥
पत्र घास को खाद्य न भायउ ।
उमा नाम तब तुमने पायउ ॥
तप बिलोकी ऋषि सात पधारे ।
लगे डिगावन डिगी न हारे ॥
तब तब जय जय जय उच्चारेउ ।
सप्तऋषि निज गेह सिद्धारेउ ॥
सुर विधि विष्णु पास तब आए ।
वर देने के वचन सुनाए ॥
मांगे उमा वर पति तुम तिनसों ।
चाहत जग त्रिभुवन निधि जिनसों ॥
एवमस्तु कही ते दोऊ गए ।
सुफल मनोरथ तुमने लए ॥
करि विवाह शिव सों भामा ।
पुनः कहाई हर की बामा ॥
जो पढ़िहै जन यह चालीसा ।
धन जन सुख देइहै तेहि ईसा ॥ 40
॥ दोहा ॥
कूटि चंद्रिका सुभग शिर,
जयति जयति सुख खानि
पार्वती निज भक्त हित,
रहहु सदा वरदानि ।
॥ इति श्री पार्वती चालीसा ॥