Ganesh chalisa in Hindi PDF- श्री गणेश चालीसा

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Ganesh chalisa in Hindi PDF- श्री गणेश चालीसा

Ganesh chalisa in Hindi PDF- श्री गणेश चालीसा

सनातन धर्म में भगवान गणेश जी को प्रथम पूजनीय माना जाता है। किसी भी मंगल कार्यक्रम की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा-आराधना करके की जाती है। भगवान गणेश जी को शुभ और लाभ का देवता माना जाता है। जो भी भक्त भगवान गणेश की पूजा अर्चना सच्चे मन से करते हैं, उन पर सदा गणेश जी की कृपा बनी रहती है। भगवान गणेश भगवान शिव और माता पार्वती के छोटे पुत्र है। भगवान गणेश का जनम माता पार्वती के द्वारा उनके शरीर पर लगी हल्दी से हुआ था। एक दिन माता पार्वती ने हल्दी का लेप लगाया था, उसी समय माता पार्वती को अपने बड़े पुत्र कार्तिकेय जी की याद आयी जो की उनसे दूर थे। इतने में माता पार्वती के शरीर में लगी हल्दी सूख गयी थी। माता पार्वती ने शरीर पर लगी हल्दी को धोते समय इकट्ठा कर उसे एक बालक स्वरुप बना दिया, जिसके बाद माता पार्वती ने उस बालक पर अपनी शक्तियों से प्राण डाल दिए। इसके बाद माता पार्वती ने बालक स्वरुप गणेश जी से कहा आप मेरे पुत्र है, और आपको मेरी आज्ञा का पालन करना होगा। उन्होंने आगे कहा देखो पुत्र अब मै स्नान के लिए अंदर जा रहीं हूँ, आपको यहां ध्यान रखना होगा की कोई भीतर प्रवेश ना करें।

जब भगवान शिव को आया गणेश जी पर क्रोध

माता पार्वती गणेश जी को आज्ञा देने के बाद अंदर स्नान के लिए चली जाती है। माता पार्वती की आज्ञा मानकर गणेश जी प्रवेश द्वार पर खड़े ह जाते है, ताकि कोई भीतर प्रवेश न कर पाए। कुछ देर के बाद उस स्थान पर भगवान शिव आ जाते है, और जैसे ही भगवान शिव भीतर प्रवेश करने के लिए आगे बढ़ते है, गणेश जी उन्हें रोक लेते है। भगवान शिव उनसे उन्हें रोकने का कारण पूछते है, तो गणेश जी बताते है की भीतर उनकी माता पार्वती स्नान कर रही हैं। माता पार्वती की आज्ञा है की कोई भीतर प्रवेश न करे। भगवान शिव उन्हें समझाते है की यहां स्थान उन्हीं का है, और माता पार्वती उनकी अर्धांगिनी है। इतना समझाने के बाद भी गणेश जी भगवान शिव जी को भीतर प्रवेश करने नहीं देते, और बार-बार उन्हें रोकने का प्रयास करते। भगवान शिव के बार-बार समझने के बाद भी गणेश जी नहीं मानते, जिसके कारण भगवान शिव को इस बात से क्रोध आ जाता है, और वह गणेश जी पर अपने त्रिशूल से वार कर देते है।

जिस कारण भगवान गणेश जी का सिर उनके धड़ से अलग हो कर धरती पर गिर जाता है। स्नान के बाद जब माता पार्वती अपने पुत्र को धरती पर मृत पड़ा देखती है, तो वह क्रोधित हो जाती है। माता पार्वती का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव अपने गणो को आज्ञा देते है की वह ऐसे शिशु का सिर लेकर आये जिसकी माता उस शिशु से विपरीत मुख करके विश्राम कर रही हो। समस्त संसार में उन्हें केवल एक हाथी का ही ऐसे सिर मिलता है, जिसकी माता उससे विपरीत मुख करके विश्राम कर रही थी, और वह सभी गण उस हाथी शिशु का ही सिर लेकर आ जाते है। इसके बाद भगवान शिव वह सिर भगवान गणेश के धड़ से जोड़कर उन्हें फिर से ठीक कर देते है।

 

 

Ganesh Chalisa in Hindi

दोहा
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
चौपाई
जय जय जय गणपति राजू। मंगल भरण करण शुभ काजू॥
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्धि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजित मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट सिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विधाता॥
ऋद्धि-सिद्धि तव चँवर डुलावे। मूषक वाहन सोहत द्वारे॥
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगल कारी॥
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्विज रूपा।
अतिथि जानि कै गौरी सुखारी। बहु विधि सेवा करी तुम्हारी॥
अति प्रसन्न ह्वै तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥
मिलहि पुत्र तुहि बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण यहि काला॥
गणनायक गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम रूप भगवाना॥
अस कहि अन्तर्धान रूप ह्वै। पलना पर बालक स्वरूप ह्वै॥
बनि शिशु रुदन जबहि तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना॥
सकल मगन सुख मंगल गावहिं। नभ ते सुरन सुमन वर्षावहिं॥
शम्भु उमा बहुदान लुटावहिं। सुर मुनि जन सुत देखन आवहिं॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आए शनि राजा॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक देखन चाहत नाहीं॥
गिरजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर न शनि तुहि भायो॥
कहन लगे शनि मन सकुचाई। का करिहौ शिशु मोहि दिखाई॥
नहिं विश्वास उमा कर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहऊ॥
पड़तहिं शनि दृग कोण प्रकाशा। बालक शिर उड़ि गयो आकाशा॥
गिरजा गिरीं विकल ह्वै धरणी। सो दुख दशा गयो नहिं वरणी॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्ह्यों लखि सुत को नाशा॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधाए। काटि चक्र सो गज सिर लाए॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण मन्त्र पढ़ शंकर डारयो॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे॥
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी की प्रदक्षिणा लीन्हा॥
चले षडानन भरमि भुलाई। रची बैठ तुम बुद्धि उपाई॥
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥
धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई। शेष सहस मुख सकै न गाई॥
मैं मति हीन मलीन दुखारी। करहुं कौन बिधि विनय तुम्हारी॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा। लख प्रयाग ककरा दुर्वासा॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै। अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

दोहा
श्री गणेश यह चालीसा पाठ करें धर ध्यान। नित नव मंगल गृह बसै लहे जगत सन्मान॥
सम्वत् अपन सहस्र दश ऋषि पंचमी दिनेश। पूरण चालीसा भयो मंगल मूर्ति गणेश॥

 

Ganesh Chalisa in Hindi PDF

 

 

 

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