Ram Raksha Stotra-परिचय
सनातन धर्म में राम रक्षा स्तोत्र भगवान श्री राम को समर्पित है। राम रक्षा स्तोत्र में भगवान श्री राम के दिव्य चरित्र का वर्णन देखने को मिलता है। आपको बता दें कि श्री राम रक्षा स्तोत्र की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक मान्यता जुड़ी हुई है। जिसके अनुसार एक दिन भगवान शंकर ने बुधकौशिक ऋषि को स्वप्न में दर्शन देकर, उन्हें रामरक्षास्त्रोत सुनाया था। प्रातःकाल उठकर ऋषि ने पर इस स्त्रोत को लिख लिया। राम रक्षा स्तोत्र स्त्रोत संस्कृत में है और इसके पाठ को काफी प्रभावी माना जाता है। भगवान श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, और मान्यता के अनुसार राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों पर स्वयं भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। भगवान श्री राम के पराक्रम और सनातन धर्म की सबसे पवित्र रामायण ग्रंथ की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। इसमें महर्षि वाल्मीकि ने भगवान श्री राम के जीवन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देते हुए, उनकी महिमा के बारे बताया था।
जानिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के बारे में
भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम भी कहा जाता है। वह सभी परुषो में सबसे उत्तम थे, और उन्होंने हमेशा अपनी मर्यादा का पालन किया। इसलिए सब उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम से जानते है। भगवान विष्णु ने अपने सातवें अवतार में भगवान श्रीराम के रूप में जन्म लिया था जिसका मुख्य उद्देश्य रावण का वध करके धरती को पापमुक्त करना था। भगवान श्री राम का जनम त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ और माता कौशल्या जी के यहां हुआ था। अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी जिनके नाम कौशल्या, कैकेयी व सुमित्रा था। भगवान श्री राम के तीन छोटे भाई भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न भी थे। लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न जी माता सुमित्रा के पुत्र थे, और भरत जी की माता कैकेयी थी। माता कैकेयी के पुत्र मोह के कारण भगवान श्री राम को 14 साल का वनवास जाना पड़ा था। जिससे कारण हुआ था रामायण का युद्ध।
जानिए क्यों हुआ था रामायण का युद्ध
भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी के गुरु ब्रह्मर्षि विश्वामित्र थे। उन्होंने भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी को कई प्रकार की शिक्षा दी थी। इसके पश्चात ब्रह्मर्षि विश्वामित्र उन्हें व लक्ष्मण जी को लेकर मिथिला राज्य गए जहाँ माता सीता का स्वयंवर था। जहाँ भगवान श्री राम ने भगवान शिव के धनुष को तोड़कर माता सीता से विवाह किया था। इसके बाद उन्हें अयोध्या का राजा बनना था। परंतु जब वहां अयोध्या लौटकर आये तो माता कैकेयी को उनके राजा बनने से दिक्कत थी। जिसके कारण उन्होंने अयोध्या नरेश दशरथ से वचन लिया की वह भगवान श्री राम को 14 साल का वनवास भेजें, ताकि भरत जी को वहां का राजा बनाया जा सके। माता की इच्छा को पूर्ण करने के लिए भगवान वनवास जाने को तैयार हुए जिसमे लक्षमण जी और माता सीता भी उनके साथ चले गए। जहाँ से रावण छल करके माता सीता का अपरहण किया। जिसके बाद भगवान श्री राम लक्ष्मण जी, हनुमान जी और उनकी पूरी सेना के साथ मिलकर लंका के राजा रावण को हराकर माता सीता को अयोध्या वापस लाते है। और फिर विधि-विधान से अयोध्या का राजा बनते है।
जानिए राम रक्षा स्तोत्र के पाठ से क्या फायदा होता है
राम रक्षा स्तोत्र में सम्पूर्ण रूप से भगवान श्री राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। ऐसा माना जाता है जो भी राम रक्षा स्तोत्र का पाठ रोज करता है, उसपर भगवान श्री राम अपनी विशेष कृपा करते है। इसका निरंतर पाठ करने से किसी भी भक्त को साहस, शक्ति और पराक्रम जैसी अनुभूति होती है। राम रक्षा स्तोत्र का निरंतर पाठ करने से माना जाता है की सभी कष्ट और परेशानी दूर हो जाती है।
Ram Raksha Stotra
॥ श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ॥
श्रीगणेशायनम: ।
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
॥ इति ध्यानम् ॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
रामरक्षां पठॆत्प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघव: पातु भालं दशरथात्मज: ॥४॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: ।
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥६॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥९॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् ।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥१३॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥१४॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥२१॥
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥२२॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: ।
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥२३॥
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: ।
अश्वमेधायुतं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥२४॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥२५॥
रामं लक्शमण पूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरम् ।
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम्
राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् ।
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२६॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥२७॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥
माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: ।
स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु ।
नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥३१॥
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥३२॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३५॥
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३६॥
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे ।
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् ।
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥३७॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥३८॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥
॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥