Krishna Chalisa-परिचय
कृष्ण चालीसा श्री कृष्ण भगवान को समर्पित चालीसा है, जिससे भक्त भगवान श्री कृष्ण की पूजा-आरती करते हैं। सनातन धर्म ने भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का ही अवतार मानते है। भगवान कृष्ण का अवतार धरती पर हो रहे अधर्म का अंत और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था।
भगवान श्री कृष्ण का जनम द्वापर युग में काल कोठरी में हुआ था, उनके मामा कंस ने उनकी माता देवकी और पिता वासुदेव जी को बंधक बना लिया था। दरसअल कंस बहुत ही दुराचारी था, उसने पृथ्वी में आतंक मचाया हुआ था। एक दिन उसके लिए एक आकाशवाणी हुई की माता देवकी और पिता वासुदेव की आठवीं संतान उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। यह सुनके उसने माता देवकी और पिता वासुदेव जी को बंधक बना लिया, और अपने सैनिकों को वहां तैनात कर दिया।
जब माता देवकी और वासुदेव जी की आठवीं संतान भगवान श्री कृष्ण का जनम हुआ, तब आकाशवाणी हुई की अपने पुत्र को तुम माता यशोदा और बाबा नन्द के यहां छोड़ आओ, और उनकी पुत्री को ले आओ। तभी कारागार का दरवाजा अपने आप खुल जाता और सभी सैनिक बेहोश हो जाते है, तब वासुदेव जी अपने पुत्र को माता यशोदा के यहां छोड़ आते है और उनकी पुत्री को अपने साथ ले आते है।
भगवान श्री कृष्ण ने किया कंस का अंत
जब कंस को पता चलता है की माता देवकी की आठवीं संतान ने जनम ले लिया है, तब वह उसकी मृत्यु करने के लिए कारागार पहुँच जाता है। जैसे ही कंस उसे मारने की कोशिश करता है, तभी आकाशवाणी होती है, हे पापी तुझे मुझे मार के क्या मिलेगा, तुझे मारने वाला वृन्दावन में पैदा हो गया है। इतना बोलकर वह बच्ची गायब हो जाती है। कई सालों बाद जब भगवान श्री कृष्ण बड़े हो जाते है, तब वह वापस मथुरा जाकर कंस का वध करके अपने माता पिता को उसके कारागार से मुक्त करा देते है।
इसके कुछ समय बाद भगवान श्री कृष्ण हस्तिनापुर जाते है, जहां पर वह पांडवों पर लगातार होते हुए अत्याचारों के विरुध्द उनका साथ देते हैं। भगवान श्री कृष्ण कई बार दुर्योधन को समझाते है कि पांडव उनके भाई है और उन्हें उनके साथ गलत व्यहवार नहीं करना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण दुर्योधन को बार-बार समझाते है, परन्तु दुर्योधन उनकी एक भी ना सुनता। महाभारत के भीषण युद्ध के पहले भी भगवान श्री कृष्ण शांतिदूत बनकर दुर्योधन को समझाने जाते है, किन्तु दुर्योधन उनका अपमान कर उन्हें बंधी बना देना का आदेश देता है, किन्तु कोई भी उन्हें बंधी नहीं कर पाता। जिसपर भगवान श्री कृष्ण उसे कहते है, अगर बना सकते हो बंधी तो बना लो, अब तुम युद्ध के लिए तैयार रहो और यह कहकर भगवान लौट जाते है।
कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन जी अपने आगे अपने परिजनों और गुरु को देखते है तब वह हताश होकर युद्ध ना करने का मन बना लेते है। तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन जी को श्रीमद भगवत गीता का ज्ञान देके उनकी समयस्या का अंत कर उनको महाभारत का युद्ध लड़ने का आदेश देते है।
Krishna Chalisa in Hindi
॥ दोहा॥
बंशी शोभित कर मधुर,
नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बफल,
नयन कमल अभिराम ॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख,
पीताम्बर शुभ साज ।
जय मनमोहन मदन छवि,
कृष्णचन्द्र महाराज ॥
॥ चौपाई ॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन ।
जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।
जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥
जय नटनागर, नाग नथइया |
कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया ॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।
आओ दीनन कष्ट निवारो ॥4॥
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ ।
होवे पूर्ण विनय यह मेरौ ॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो ।
आज लाज भारत की राखो ॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।
मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥
राजित राजिव नयन विशाला ।
मोर मुकुट वैजन्तीमाला ॥8॥
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे ।
कटि किंकिणी काछनी काछे ॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।
छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥
मस्तक तिलक, अलक घुँघराले ।
आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥
करि पय पान, पूतनहि तार्यो ।
अका बका कागासुर मार्यो ॥12॥
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला ।
भै शीतल लखतहिं नंदलाला ॥
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई ।
मूसर धार वारि वर्षाई ॥
लगत लगत व्रज चहन बहायो ।
गोवर्धन नख धारि बचायो ॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।
मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ॥16॥
दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।
कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।
चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें ॥
करि गोपिन संग रास विलासा ।
सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥
केतिक महा असुर संहार्यो ।
कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो ॥20॥
मातपिता की बन्दि छुड़ाई ।
उग्रसेन कहँ राज दिलाई ॥
महि से मृतक छहों सुत लायो ।
मातु देवकी शोक मिटायो ॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।
लाये षट दश सहसकुमारी ॥
दै भीमहिं तृण चीर सहारा ।
जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ॥24॥
असुर बकासुर आदिक मार्यो ।
भक्तन के तब कष्ट निवार्यो ॥
दीन सुदामा के दुःख टार्यो ।
तंदुल तीन मूंठ मुख डार्य ॥..