Surya Chalisa- परिचय
सनातन धर्म में सूर्य देव और चंद्र देव ऐसे देवता है, जिन्हें भक्त प्रत्यक्ष स्वरुप में देख सकते हैं। आज हम आपको सूर्य देव के बारे में बताएँगे, जिनकी भक्त सूर्य चालीसा का पाठ करके पूजा-अर्चना करते हैं। सूर्य देव के कारण ही पृथ्वी प्रकाशवान और जगमगाती रहती है। सनातन धर्म के अनुसार सूर्य देव को नवग्रहों में राजा का स्थान प्राप्त है। इसका उदाहरण आज भी देखा जा सकता है कि किस प्रकार नवग्रहों सूर्य देव के चारो तरफ चक्कर लगाते है। सूर्य देव के कारण ही पृथ्वी में समस्त मनुष्य, पशु-पक्षी एवं पेड़-पौधों को जीवन ऊर्जा मिलती है। आज के विज्ञान में भी बताया जाता है कि बिना सूर्य, पृथ्वी में जीवन असंभव है। सूर्य देव की नियमित पूजा करने से सूर्य जैसा तेज और ऊर्जा शक्ति प्राप्त होती है। मान्यता है कि सूर्य देव को जल अर्पित से जीवन में समस्याओं का अंत होता है।
सूर्य देव को जल अर्पित करने का लाभ
जिस प्रकार शिवलिंग पर जल अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते है। उसी प्रकार सूर्य देव को जल अर्पित करने से सूर्य देव प्रसन्न होकर अपने भक्तो पर कृपा करते है। सूर्य देव को जल अर्पित करने से मन एकाग्र होता है, तथा शरीर से जुडी समयस्या का निवारण होता है। आज के आधुनिक विज्ञान ने भी इसकी पुष्टि की है कि सूर्य को जल अर्पित करने से स्वास्थ्य लाभ होते है। वैज्ञानिकों के अनुसार सुबह-सुबह सूर्य देव को जल अर्पित करने से शरीर में विटामिन डी की कमी नहीं होती है, और शरीर स्वस्थ रहता है।
Surya Chalisa in Hindi
दोहा:
श्री रवि हरत हो घोर तम
अगणित किरण पसारी
वंदन करू तब चरणन में
अर्ध्य देऊ जल धारी
सकल सृष्टि के स्वामी हो
सचराचर के नाथ
निसदिन होत तुमसे ही
होवत संध्या प्रभात
चौपाई:
लिरिक्सबोगी.कॉम
जय भगवान सूर्य तम हरी
जय खगेश दिनकर शुभकारी
तुम हो सृष्टि के नेत्र स्वरूपा
त्रिगुण धारी त्रै वेद स्वरूपा
तुम ही करता पालक संहारक
भुवन चतुदर्श के संचालक
सुंदर बदन चतुर्भुज धारी
रश्मि रथी तुम गगन विहारी
चक्र शंख अरु श्वेत कमलधर
वरमुद्रा सोहत चोटेकर
शीश मुकुट कुंडल गल माला
चारु तिलक तब भाल विशाला
सप्त अश्व रथ अतिद्रुत गामी
अरुण साथी गति अविरामी
रक्त वरुण आभूषण धारक
अतिप्रिय तोहे लाल पदार्थ
सर्वात्मा कहे तुम्हें ऋग्वेदा
मित्र कहे तुमको सब वेदा
पंचदेवों में पूजे जाते
मनवांछित फल साधक पाते
द्वादश नाम जाप उदधारक
रोग शोक अरु कष्ट निवारक
माँ कुंती तब ध्यान लगायों
दानवीर सूत कर्ण सो पायो
राजा युधिष्ठिर तब जस गायों
अक्षय पात्र वो वन में पायो
शस्त्र त्याग अर्जुन अकुरायों
बन आदित्य ह्रदय से पायो
विंध्याचल तब मार्ग में आयो
हाहाकार तिमिर से छायों
मुनि अगस्त्य गिरि गर्व मिटायो
निजटक बल से विंध्य नवायो
मुनि अगस्त्य तब महिमा गायी
सुमिर भये विजयी रघुराई
तोहे विरोक मधुर फल जाना
मुख में लिन्ही तोहे हनुमाना
तब नंदन शनिदेव कहावे
पवन के सूत शनि तीर मिटावे
यज्ञ व्रत स्तुति तुम्हारी किन्ही
भेंट शुक्ल यजुर्वेद की दीन्ही
सूर्यमुखी खरी तर तब रूपा
कृष्ण सुदर्शन भानु स्वरूपा
नमन तोहे ओंकार स्वरूपा
नमन आत्मा अरु काल स्वरूपा
दिग दिगंत तब तेज प्रकशे
उज्ज्वल रूप तुम्ही आकशे
दश दिग्पाल करत तब सुमिरन
अंजली नित्य करत हैं अर्पण
त्रिविध ताप हरता तुम भगवन
ज्ञान ज्योति करता तुम भगवन
सफल बनावे तब आराधना
गायत्री जप सरल है साधन
संध्या त्रिकाल करत जो कोई
पावे कृपा सदा तब वो ही
चित शांति सूर्याष्टक देव
व्याधि अपाधि सब हर लेवे
अष्टदल कमल यंत्र शुभकारी
पूजा उपासन तब सुखकारी
माघ मास शुद्धसप्तमी पावन
आरंभ हो तब शुभ व्रत पालन
भानु सप्तमी मंगलकारी
भक्ति दायिनी दोषण हारी
रविवासर जो तुमको ध्यावे
पुत्रादिक दुख वैभव पावे
पाप रूपी पर्वत के विनाशी
व्रज रूप तुम हो अविनाशी
राहू आन तब ग्रास बनावे
ग्रहण सूर्य ताको लग जावे
धर्म दान तप करते है साधक
मिटत राहू तब पीड़ा बाधक
सूर्य देव तब कृपा कीजे
दिर्ध आयू बल बुद्धि दीजे
सूर्य उपासना कर नीत ध्यावे
कुष्ट रोग से मुक्ति पावे
दक्षिण दिशा तोरी गति जावे
दक्षिणायन वो ही कहलावे
उत्तर मार्गी तोरो रथ होवे
उत्तरायण तब वो कहलावे
मन अरु वचन कर्म हो पावन
संयम करता भलित आराधना
दोहा:
भरत दास चिंतन करत
घर दिनकर तब ध्यान
रखियों कृपा इस भक्त पे
तुम्हारी सूर्य भगवान