Bhairav Chalisa in Hindi PDF- भैरव चालीसा

Bhairav Chalisa

Bhairav Chalisa in Hindi PDF- भैरव चालीसा

Bhairav Chalisa-परिचय

भैरव जी भगवान शिव के गणों में से एक गण है। भैरव जी को भगवान शिव का रौद्र अवतार भी माना जाता है। यह अवतार भगवान शिव के सबसे भयंकर अवतार के रूप में जाना जाता है। जब-जब समस्त ब्रम्हांड में संकट आया है, तब-तब भगवान शिव अपना यह भयंकर अवतार लेकर उस संकट को हर लेते है। भैरव जी को नव दुर्गा माताओं का रक्षक भी माना जाता है, और जहाँ भी माता के शक्ति पीठ है वहां भैरव जी का मंदिर भी पाएंगे जो माता की रक्षा करते हैं।

जानिए क्यों शक्ति पीठ की रक्षा करते है भैरव जी

 

यह कथा देवी सती और उनके पिता दक्ष प्रजापति से जुडी है। जब दक्ष प्रजापति ने महा यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन अपने दामाद भगवान शिव को उसका निमंत्रण नहीं दिया। इसका कारण जानने जब माता सती वहां पहुंची तो दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को अपशब्द कहकर अपमान किया, जिसके अपमान से पीड़ित होकर माता सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शिव को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध की वजह से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और वे क्रोध की वजह से तांडव करने लगे। इसके पश्चात भगवन शिव ने यज्ञ-स्थल पर पहुंच कर यज्ञकुंड से माता सती के पार्थिव शरीर को निकाला और कंधे पर उठा लिया और दुखी मन से वापस कैलाश पर्वत की ओर जाने लगे। इस दौरान देवी सती के शरीर के अंग जिन-जिन जगहों पर गिरे वह स्थान शक्ति पीठ कहलाये, उस समय भगवान शिव ने अपने भैरव रूप को उन स्थानों की रक्षा करने के लिए भेजा।

Bhairav Chalisa in Hindi

।। दोहा ।।

गणपति, गुरू गौरी पद, प्रेम सहित धरि माथ ।

चालीसा वन्दन करौं, श्री शिव भैरवनाथ ।।

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।

श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ।।

।। चौपाई।।

जय जय श्री काली के लाला ।

जयती जयती काशी-कुतवाला ।।

जयती ‘बटुक भैरव’ भय हारी ।

जयती ‘काल भैरव’ बलकारी ।।

जयती ‘नाथ भैरव’ चिख्याता ।

जयती ‘सर्व भैरव’ सुखदाता ।।

भैरव रूप कियो शिव धारण ।

भव के भार उतारण कारण ।।

भैरवं रव सुनि है भय दूरी ।

सब विधि होय कामना पूरी ।।

शेष महेश आदि गुण गायो ।

काशी के कोतवाल कहलायो ।।

जटा जूट शिव चन्द्र विराजत ।

बाला, मुकुट बिजायठ साजत ।।

कटि करधनी घुंघरू बाजत ।

दर्शन करत सकल भय भाजत ।।

जीवन दान दास को दीन्हयो ।

कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ।।

वसि रसना बनि सारद-काली ।

दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ।।

धन्य धन्य भैरव भय भंजन ।

जय मनरंजन खल दल भंजन ।।

कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा ।

कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ।।

जो भैरव निर्भय गुण गावत ।

अष्टसिद्धि नवनिधि फल पावत ।।

रूप विशाल कठिन दुःख मोचन ।

क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ।।

अगणित भूत-प्र -प्रेत संग डोलत ।

बं बं बं शिव बं बं बोलत ।।

रूद्रकाय काली के लाल ।

महा कालहू के हो कालाः ।।

बटुक नाथ हो काल गंभीरा ।

श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ।।

करत तीनहुं रूप प्रकाशा ।

भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ।।

रत्न जड़ित कंचन सिंहसान ।

व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआसन ।।

तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं ।

विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ।।

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय ।

जय उन्नत हर उमानन्द जय ।।

भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय ।

बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ।।

महाभीम भीषण शरीर जय ।

रुद्र त्र्यत्वक धीर वीर जय ।।

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय ।

रूवानारूढ़ सयचन्द्र नाथ जय ।।

निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय ।

गहत अनाथन नाथ हाथ जय ।।

त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय ।

क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ।।

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय ।

कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ।।

रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर ।

चक्र तुण्ड दश पाणिव्यालधर ।।

करि मद पान शम्भु गुण गावत ।

चौंसठ योगिन संग नचावच ।।

करत कृपा जन पर बहु ढंगा ।

काशी कोतवाल अड़बंगा ।।

देय काल भैरव जब सोटा ।

नसै पाप मोटा से मोटा ।।

जनकर निर्मल होय शरीरा ।

मिटै सकल संकट भव पीरा ।।

श्री भैरव भूतों के राजा ।

बाधा हरत करत शुभ काजा ।।

ऐलादी के दुःख निवार्यो ।

सदा कृपा करि काज सम्हार्यो ।।

। सुन्दरदास सहित अनुरागा ।

श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ।।

‘श्री भैरव जी की जय’ लेख्यो ।

सकल कामना पूरण देख्यो ।।

।। दोहा ।।

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।

कृपा  दास पर  कीजिए, शंकर  के अवतार ।।

जो यह चालीसा  पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।।

उस  घर  सर्वानन्द  हो, वैभव  बढ़े  अपार ।।

 

 

 

 

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